नई दिल्ली ।  एनसीआर के लोग सुविधाजनक सार्वजनिक परिवहन सेवा की आकांक्षा रखते हैं। वे उम्मीद लगाए बैठे हैं कि आने वाले वर्षों में सार्वजनिक परिवहन सेवा बेहतर बने। बसों में सफर आरामदायक हो और समय से गंतव्य तक पहुंचें। यूं तो बसों की अनुपलब्धता की समस्या पूरे एनसीआर की है, लेकिन दिल्ली में कुछ ज्यादा है, क्योंकि यहां बसों की संख्या कम है। इसकी वजह से एनसीआर के विभिन्न रूटों पर बसों की संख्या बेहद कम है। वहीं, एक समस्या यात्रियों के भरोसे की भी है, उन्हें विश्वास नहीं है कि बस से गंतव्य तक समय पर पहुंच सकेंगे या रास्ते में खराब नहीं होंगी। दिल्ली की स्थिति कुछ ऐसी है। प्रतिदिन औसतन 500 बसें सड़क पर खराब हो जाती हैं और यात्रियों को परेशानी झेलनी होती है। इसका कारण 80 प्रतिशत से अधिक बसों का पुराना होना है। लोगों की आकांक्षा है कि हालात बदलें और राजधानी ही नहीं, बल्कि एनसीआर के सभी शहरों में सार्वजनिक परिवहन को मजबूत किया जाए, ताकि लोग अपने वाहनों का मोह छोड़ सकें। दिल्ली में 11 हजार बसों की जरूरत है, मगर 7582 बसें ही हैं। यहां परिवहन व्यवस्था दिल्ली परिवहन (डीटीसी) और डिम्ट्स पर निर्भर है। डीटीसी की अधिकतर लो-फ्लोर सीएनजी बसों ने तकनीकी परिचालन सीमा को पार कर लिया है। आठ साल से अधिक चलने वाली बसें ओवरएज घोषित हो जाती हैं। जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के तहत चल रहीं लो-फ्लोर सीएनजी बस का अधिकतम परिचालन जीवन 12 वर्ष या 7.5 लाख किमी है, लेकिन कमी के चलते अनुमति लेकर पुरानी बसें ही चलाई जा रही हैं। वर्तमान में दिल्ली के बस बेड़े में 3,141 बसें डिम्ट्स और 4,441 बसें डीटीसी की हैं। 2025 तक 10,480 बसें करने का लक्ष्य है। इसमें से 80 प्रतिशत इलेक्ट्रिक बसें होंगी। अभी दिल्ली की सड़कों पर डीटीसी की 1650 इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं। पिछले साल से नई बसें बढ़ी हैं, लेकिन इसमें और तेजी की जरूरत है।