मुंबई हमलों का गुनहगार तहव्वुर राणा बहुत शातिर है. भारत आने से बचने के लिए वह चाल पर चाल चल रहा है. 26/11 मुंबई अटैक के आरोपी तहव्वुर राणा ने अपने प्रत्यर्पण से बचने के लिए अब नई चाल चली है. तहव्वुर राणा ने भारत आने से बचने लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स के सामने अर्जी दाखिल की है. इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एलेना कगन ने उसकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद तहव्वुर राणा सीधे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास पहुंचा है.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित इसकी पूरी डिटेल दी गई है. इसके मुताबिक, तहव्वुर राणा की अर्जी को 4 अप्रैल, 2025 को होने वाली कॉन्फ्रेंस के लिए सुप्रीम कोर्ट के जजों को सौंप दिया गया है. आरोपी तहव्वुर राणा ने भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग करते हुए अपनी अर्जी नए सिरे से दायर की है.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित आदेश के मुताबिक, तहव्वुर राणा की अपील में कहा गया है कि तहव्वुर राणा ने जस्टिस कगन के समक्ष दायर की गई अपनी आपातकालीन अर्जी का नवीनीकरण किया है. इसमें  भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की गई थी. अब यह अनुरोध किया गया है कि नए आवेदन को चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स के समक्ष पेश किया जाए.’

पिछली चाल क्या थी
राणा ने एक अपील के जरिए कहा, ‘अगर रोक नहीं लगाई गई तो कोई समीक्षा नहीं होगी और अमेरिकी अदालतें अधिकार क्षेत्र खो देंगी और याचिकाकर्ता जल्द ही मर जाएगा.’ 26/11 के आतंकी हमलों के आरोपी ने दावा किया कि अगर उसे भारत प्रत्यर्पित किया जाता है, तो पाकिस्तानी मूल का मुसलमान होने के कारण उसके साथ अत्याचार की प्रबल संभावना है.

कौन है राणा?
तहव्वुर राणा पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक है . उसका जन्म पाकिस्तान में हुआ है. वह पेशे से डॉक्टर है. उसने पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर की सेवा दे चुका है. वह मुंबई हमले का मास्टर माइंड डेविड हेडली का करीबी बताया जाता है. ये भी कहा जाता है राणा ने ही भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में मौत के तांडव के लिए फाइनेंस किया था. हालांकि, जब अमेरिकी कोर्ट ने राणा को 2009 में गिरफ्तार करने के बाद मुंबई हमले से बरी कर दिया था, वहीं, भारत ने कूटनीतिक चाल से उसे खिलाफ दोष सिद्ध करवाए और अमेरिका से उसके प्रत्यर्पण की बात चलती रही. राणा ने 13 नवंबर को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के एक दिन बाद 21 जनवरी को शीर्ष अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया था.