
वक्त बहुत गुजारा मैनें, खो दिया वो समय कुछ ही क्षण मे|
वक्त का कैहर देखो मुझपर क्षण क्षण भारी सा है शहर में |
खुली किताब न ज़िंदगी की पृष्ठ रंग देखा हर क्षण,
वक्त भी सलाह करता नही किसी से बदल गया एक क्षण में |
मुठ्ठी मे बंदकर समय रखा था, हथेली से निकल गया कुछ क्षण में |
समय का पाहिया चलता रहा मै ठहरी रही मेरा वक्त गुजरता रहा,
अब बंद हैं ख्याईशेंमेरी मेरे दिल के घर में|
अब कहता है दिल मेरा मुझसे जाग जा अन्धेरा कम है ,
आहट तेरी तुझे जगा रही जाग जा समय कम है |
चल उठा कदम हौसले का सब दिखता है रात में |
मिल जाती है मंज़िल हौसले की बात में।
छोड़ दे ये आराम की दोस्ती , साथ लिए हुनर का सहारा|
लौट आती है नाव पीछे जब मिलता है नदी का किनारा|
तेरी मौन आवाज़ कुछ कहती है इस सुर में |
वक्त का कैहर देखो मुझपर क्षण क्षण भारी सा है शहर में |
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